Monday, May 21, 2012

मानु ने मानु.....

मानु ने मानु,
नव चेतना दूर,
हम मैथिल मजबूर,
सभ्य होबाक मुखौटा लगौने,
स्वयं अपन रीढ़क हड्डी तोरै छि,
जागलो में किछ नई बुझै छि,
युवा छि,
पर साहस कहाँ ?
स्वाभिमान बनेबाक
सामर्थ्य कहाँ ?
समय संग चलैक,
दृष्टी कहाँ ?
प्रतिकार करैक,
तर्क कहाँ ?
मानु ने मानु,
अहाँक अधोगतिक,
बिज पहिनहि रोपल गेल अई,
दहेजक   बिष पैन ,
अहाँक नहौल गेल,
अहाँ  महैक गेल छि,
भिनैक गेल छि,
प्रखर संस्कृति लुढैक गेल छि,
आनक पुरुसार्थ पर,
ठाढ़ होबाक कोशिस,
अपाहिजे  बनाओत,
क्रमशः  और,
निस्तेज निर्बल होइत जैब,
प्रागतिक भ्रम में फंशल,
स्वयं   हारैत,
कोन रेस में भगैत छि,
ठहरू  !
थोरेक सोचु ,
अहाँ स्वयं के कतेक सम्मान करै छि,


1 comment:

  1. Bohot nik Kavita.Ahank kavita, Lobhi aur ahankari, ghrinit(Ridhvihin),samaj par bajra ke bhanti kathor prahar kartain aur swabhimani satyamargi, parisrami, sahaj purush ke sitaltak anubhav karotain.satya bachan, satya shravan, satya maarg bohot kathin ai.Sahaj loke ta ai marg ke sahajata sa grahan karait chaith. ahank sahas aur praytna aukarniya ai.Bohot nik vichar bohat nik kavita.......

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