Thursday, November 25, 2010

सहजता


ज्ञान आ विज्ञान

अनुसंधाने सढ़ै  छै
साहित्यक सृजन,
मंथनेस हो छै
चाहे रूप गढ़ू,
आकि रंग घोरू,

प्रेम करू,
वा नोर बहाऊ,

मोनक उद्वेग,
संयमेस रुकै छै

पीड़ा ह्रदयक,
सहजतेस कमै छै

Monday, November 22, 2010

माँ गई माँ (बाल कविता)


माँ गै माँ,
घरक ऊपर,
चारक तर,
बगरा बनेलकऊ,
एकटा घर

माँ गै माँ,
घरक पाछू,
बारीक बिच,
सुगा अनलकऊ,
एकटा फर

माँ गै माँ,
गामक भीतर,
टोलाक बिच,
नटुआ नचलऊ,
एकटा नाच

माँ गै माँ,
गामक बाहर,
पोखरिक बिच,
पुरैनिक पातपर,
झिलमिल जल

माँ गै माँ,
आँगन कात,
ढेकी लग,
बिहरिमे छौ,
गहुमन साँप

माँ गै माँ,
बस्तुनिया लय,
हम कहलियौ,
सब हाल-चाल,
जल्दीसँ दऽ दहीं,
बस्तुनिया हमर,
हम चललियऊ,
खेलय लेल,
नै देबहीं,
बस्तुनिया हमर

माँ गई माँ,
चिकरैत रहबौ, 
माँ गै माँ,
चिकरैत रहबौ।   

Sunday, November 14, 2010

रीढ़ विहीन पुरुष

पुरू पुरुषार्थ कतय हेरायल अइ,
नइ बुझना जाइत अइ,
दहेजक बैशाखी पकड़ी,
अमरलत्ती जका,
रीढ़ विहीन,
परिचय.....

सुनैत लौं,

स्त्री नोरक समुद्रमे,
पुरषार्थक नाव हेलै छैक,
मुदा!

जँ नावमे भूर गेल,

पुरु समाज दुनूके डुमा दैत छैक,
मुदा!

रीढ़ विहीन पुरषार्थक नावे की,

जेकर कोनो पतबारे नै अइ,
दिशा हीन,
र्जा विहीन,
दोसरक धनस सिंचित ,
अपन स्वाभिमान बनाबमे लागल अइ,
बिना सुगंध,
कृत्रिम फू जका,
सोझे सजाबट लेल.......

सृजनात्मकतास दूर,

प्रकृतस बिमुख,
सिनेमाक रील जका,
अपन जीवन बीतबैत अइ,
हे बिधाता !

अहीं रचने छी,

पुरु पहाड़-पर्वतके छाती चीरि,
स्त्री नदी श्रीजनक सुन्दर संसार रचैत छथि,
कि ने ,
दहेजक दाबानलमे,
पुरू रीढ़ बिहीन पुरषार्थके जरा ,
ओकर समूल बिनाश ,
पुनः मेघक घोर गर्जनमे,
शिवक तांडवस,
पुरू पुरषार्थके ठाढ़ करी,
झर-झर बुन्नी बसातमे,
नव कोपलक संग,
मधुर गीतक गुंजनमे,
स्वाभिमानी रीढ़युक्त समाजक परिचय बनी.


पंकजझा23@जीमेल.कॉम

Saturday, November 13, 2010

उद्वोधन


कहियो पूर्णिमा सन आलोकित,
मैथिल, मिथिला आ मैथिली,
घोर अन्हरियामे हराओल अ,
किछ दूर टिमटिमाइत तारा सन,
किछ मिटैल पगडण्डी,
रि-धुरिमे ओझराल अ,
सभ्यातक सूर्य,
कहिया परिचयके बदलि देलक,
किछ आभासो नै भेल,
मुदा !
जहन-जहन पाछू तकैत छी,
ह्रदयमे किछु उथल-पुथल,
बहरा लेल व्याकुल अ,
मुदा !
भीतरे-भीतर घुटि जाइत अ,
स्वच्छन्दता- स्वतंत्रता नै अ,
अपन अहंग,
सैहबी डोरीमे बन्हाए,
जाबी लगौने,
बरद जका ऑफिसक दाउनमे लागल छी,
अपन सहजता-सरलतास डेराइ,
जे पाछू नै भ जा,
अपन परिचयस भगैत,
नव परिचय बनाबैमे लागल छी,
मुदा !
ओ स्वर्णिम गौरव गाथा,
कोना लिखब,
माता-पिता आ पूर्वजक प्रति श्रद्धा बिनु,
भाषाक प्रेम सिनेह बिनु,
कोन रंगस रंगब
अपन कैनवासके…..
कोन गीतस सजैब
अपन जीवनके……
मुदा !
हम सुतल नै छी,
मरल नै छी,
जागल छी,
हमर अल्हड़ता, हमर सहजता, हमर नम्रता
हमर परिचय अ,
सभ्यातक आलोकस आलोकित,
आब हम समर्थवान छी,
किक ने अपन समृद्धि,
अपन परिचयकेँ सींची,
अतीत त स्वर्णिम छल,
आब आ आ आबैबला काल्हि,
के सेहो स्वर्णिम बनाबी,
गोटे मिली कऽ,
एक दोसरके मैथिलीक रपान कराबी.


पंकजझा23@ जीमेल.कॉम