Sunday, November 14, 2010

रीढ़ विहीन पुरुष

पुरू पुरुषार्थ कतय हेरायल अइ,
नइ बुझना जाइत अइ,
दहेजक बैशाखी पकड़ी,
अमरलत्ती जका,
रीढ़ विहीन,
परिचय.....

सुनैत लौं,

स्त्री नोरक समुद्रमे,
पुरषार्थक नाव हेलै छैक,
मुदा!

जँ नावमे भूर गेल,

पुरु समाज दुनूके डुमा दैत छैक,
मुदा!

रीढ़ विहीन पुरषार्थक नावे की,

जेकर कोनो पतबारे नै अइ,
दिशा हीन,
र्जा विहीन,
दोसरक धनस सिंचित ,
अपन स्वाभिमान बनाबमे लागल अइ,
बिना सुगंध,
कृत्रिम फू जका,
सोझे सजाबट लेल.......

सृजनात्मकतास दूर,

प्रकृतस बिमुख,
सिनेमाक रील जका,
अपन जीवन बीतबैत अइ,
हे बिधाता !

अहीं रचने छी,

पुरु पहाड़-पर्वतके छाती चीरि,
स्त्री नदी श्रीजनक सुन्दर संसार रचैत छथि,
कि ने ,
दहेजक दाबानलमे,
पुरू रीढ़ बिहीन पुरषार्थके जरा ,
ओकर समूल बिनाश ,
पुनः मेघक घोर गर्जनमे,
शिवक तांडवस,
पुरू पुरषार्थके ठाढ़ करी,
झर-झर बुन्नी बसातमे,
नव कोपलक संग,
मधुर गीतक गुंजनमे,
स्वाभिमानी रीढ़युक्त समाजक परिचय बनी.


पंकजझा23@जीमेल.कॉम

4 comments:

  1. AHANK "RIDH VIHIN PURUSH" KAVITA SA SWASTHA AA SWABHIMANI SAMAJ KE ANKURAN KE BODH HOIT AICH.ASHA AICHA JE HAM PATHAKGAN AHANK PRYASH KE SARTHAK BANABI AA SWABHIMANI MAITHIL SAMAJ KE NIRMAN ME SAHYOGI BANI.

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  2. BIDEHNANDINI AJUK MAITHIL LALANA KE HRIDAY KE CHITKAR PAR AWSYA BYATHIT HOIT HETI....AHANK KAWITA KEWAL SARAHNIYA NAHI AICH BARAN BAHUT AWSYAK AICH....YOUR WORDS SHOWS SOME PEOPLE UNDERSTAND THE VALUE OF SELF-RESPECT.........AHANK NAYA SRIJAN LEL KAN PATNE RAHAB

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  3. प्रिय पंकज जी अहाँक कविता "रीढ़ विहीन पुरुस " ह्रदय के भीतर तक छु लेलक.आशा करैत छि मैथिल युवा अपन आत्मसम्मान आ गौरब के रक्षा स्वयं करता. ई कविता मैथिल समाज के दशा और दिशा दुनु बदैल देत .........

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