Thursday, February 3, 2011

अईंखक दोख आ कि हृदयक….

अईंखक कोन दोख,
जे अहाँक सुन्दरता नई देखलक,
 त देखै टा मात्र छै,
बुझै नई छै,
बिम्ब  प्रतिबिम्बक,
बिच फंसल मात्र एकटा पराबर्तक  छै,
दोस त ह्रदय के छै,
जे भावना शुन्य  छै,
तैं अहाँक सुन्दरताक झीलों में,
मरुभुमिक दग्धातक देखै छै,
ओना जे आन्हरो छैथ,
से कल्पनाक ब्रश ,
सुन्दरताक सृजन हृदयक भाव स करैत छैथ,
मुदा !
जे भाव विहीन छैथ,
अईंख रहितो,
बिम्ब-प्रतिबिम्ब में ओझराइल रहैत छैथ,
अई में हुनको कोनो दोख नई,
जे भाव विहीन छैथ,
यन्त्र बनी बरद  जँका,
जीवनक दाउन में लागल छैथ,
हुनका त आभासों नई छैन,
कि अहू स बिशेष किछ छैई,
मुद्रा-मतलबक डोरी में बन्हैल,
सुखैल बासि खैक आदि,
स्वक्षताक रस  दूर,
जीवनक मकरजाल में,
फंसल छैथ, हेराइल छैथ,