अईंखक कोन दोख,
जे अहाँक सुन्दरता नई देखलक,
ओ त देखै टा मात्र छै,
बुझै नई छै,
बिम्ब आ प्रतिबिम्बक,
बिच फंसल मात्र एकटा पराबर्तक छै,
दोस त ह्रदय के छै,
जे भावना शुन्य छै,
तैं अहाँक सुन्दरताक झीलों में,
मरुभुमिक दग्धातक देखै छै,
ओना जे आन्हरो छैथ,
से कल्पनाक ब्रश स,
सुन्दरताक सृजन हृदयक भाव स करैत छैथ,
मुदा !
जे भाव विहीन छैथ,
अईंख रहितो,
बिम्ब-प्रतिबिम्ब में ओझराइल रहैत छैथ,
अई में हुनको कोनो दोख नई,
जे भाव विहीन छैथ,
यन्त्र बनी बरद जँका,
जीवनक दाउन में लागल छैथ,
हुनका त आभासों नई छैन,
कि अहू स बिशेष किछ छैई,
मुद्रा-मतलबक डोरी में बन्हैल,
सुखैल बासि खैक आदि,
स्वक्षताक रस स दूर,
जीवनक मकरजाल में,
फंसल छैथ, हेराइल छैथ,